रीती-रीती आँखोँ वाली
बुझी-बुझी सी मेरी मां
जाने क्योँ मुझको लगती है
थकी-थकी सी मेरी मां।
अपने जीवन के रस से
उसने हम सबको सीँचा था
जो अमृत से भरी नदी थी
रेत हो गई मेरी माँ।
बाँधा था उसने हर रिश्ता
अपनी प्रीत की डोरी से
डोर तोड. सब हुए पराए
अब है कटी कटी सी माँ।
बच्चोँ के जीवन की खातिर
दिन और रात कर दिए एक
बडे. हुए और हुए पराए
जीना भूली मेरी माँ।
बचपन मेँ जिनकी खातिर
वह खुद भूखी रह जाती थी
आज उसी के गेस्ट-रूम मेँ,
अक्सर सोती भूखी माँ।
समय का मोल सिखाया उसने
और जीवन के पाठ दिए
आज हो गया समय कीमती
और हो गई सस्ती माँ।
रीती-रीती आँखोँ वाली
बुझी-बुझी सी मेरी मां
जाने क्योँ मुझको लगती है
थकी-थकी सी मेरी मां।
बुझी-बुझी सी मेरी मां
जाने क्योँ मुझको लगती है
थकी-थकी सी मेरी मां।
अपने जीवन के रस से
उसने हम सबको सीँचा था
जो अमृत से भरी नदी थी
रेत हो गई मेरी माँ।
बाँधा था उसने हर रिश्ता
अपनी प्रीत की डोरी से
डोर तोड. सब हुए पराए
अब है कटी कटी सी माँ।
बच्चोँ के जीवन की खातिर
दिन और रात कर दिए एक
बडे. हुए और हुए पराए
जीना भूली मेरी माँ।
बचपन मेँ जिनकी खातिर
वह खुद भूखी रह जाती थी
आज उसी के गेस्ट-रूम मेँ,
अक्सर सोती भूखी माँ।
समय का मोल सिखाया उसने
और जीवन के पाठ दिए
आज हो गया समय कीमती
और हो गई सस्ती माँ।
रीती-रीती आँखोँ वाली
बुझी-बुझी सी मेरी मां
जाने क्योँ मुझको लगती है
थकी-थकी सी मेरी मां।
by dr. Rashmi
तेरी रुसवाईयोँ से डरता हूँ
जब तेरे शहर से गुजरता हूँ
हाल-ए-दिल भी न कह सका तुझसे
तू रही मुद्दतो करीब मेरे
तू मुझे छोड़ कर चली भी गई
खै.र किस्मत मेरी, नसीब मेरे
अब मै क्यों तुझको याद करता हूँ
जब तेरे शहर से गुजरता हूँ
तेरी रुसवाईयोँ से डरता हूँ......
Source- unknown
13/11/13
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