Monday, May 25, 2015

Kiran Jhamb (M-437) - एक कविता —बुरा न मान ो जरा सी पी है

एक कविता —बुरा न मान ो जरा सी पी है

पीने वालों को पीने की होती है आदत
केवल जाम से ही है उनको मुहब्बत 
खुशी है तो कहते हैं कि मनाऊंगा खुशी 
गम में कहें पी नहीं तो कर लूंगा खुदकुशी
खुशी में पी तो कहा कि सरुर आ गया 
नशे में झूमने का मजा जरूर आ गया 
शुक्र खुदा  का किसी ने बनाई  शराब
गर यह न होती तो होता मजा खराब
जीवन की गाङी जरा  डगमगाई
तो भी लेकर जाम  दी यह सफाई
यारो नहीं  है मुझे पीने  की आदत 
जरा सी पीकर किया  गम गफलत
अब तो  समय ऐसा आ गया है कि 
बीवियों को  भी पिलाने   लगे हैं
खुद  को  तो  क्या  संभालना  था 
पिलाकर यह उन्हे भी गिराने लगे हैं
किरन झांब 
एम —437
05/05/15 

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