Saturday, September 10, 2016

S K Gupta (M-552) - "कल, आज और कल"- A poem on Plight of Pensioners

"कल, आज और कल"  

हम थे जिन के सहारे 
वो हुए न हमारे 
देते रहे हमें बस दिलासा 
फिर छोड़ गए बीच मझधारे । 

कहते रहे यही राजन जी 
थोड़ा तो धीरज तुम धरो जी 
तन-मन से मैं अब लगा हूँ 
पेंशन जल्द अपडेट होगी ।

हालांकि राह कुछ कठिन है 
पर चिंता तुम न करो जी 
मेरी कोशिश चल रही है
आशा है यह फलीभूत होगी । 

हम भी करते रहे उन पर भरोसा 
तीन बरस में जो कुछ उन्होंने था परोसा 
करते भी तो और हम क्या करते?
पर आज हमने खुद को जी भर के कोसा ।

ऐसा कभी सोचा न था कि राजन जी
किसी नेता की माँनिंद 'वायदे ही वायदे' करेंगे 
यूं तो रघुराम जी को भुलाना है मुश्किल 
किन्तु यादों में उनकी फूलों संग कांटे भी चुभेंगें । 

बेहतर तो यही होता यदि राजन जी 
ये झूठे सपने न दिखाए होते अपनेपन के 
न ही जगती कोई धूमिल-सी आशा 
बिछुड़े हुए साथियों के परिजनों के मन में । 

सोचा था विदाई के अंतिम क्षणों में 
अब तो वे सच, केवल सच ही कहेंगे 
पर डाल दिया उस पर भी पर्दा 
कहकर कि मंत्री जी से कल फिर मिलेंगे । 

कल भी यही सब हमने था देखा 
आज फिर वही आपने कर दिखाया 
पर 'या खुदा' हम तो अब भी वहीं खड़े हैं 
वर्षों पहले जहां हमने खुद को था पाया ।  

न जाने अब कल क्या होगा
क्या फिर से उम्मीदें जगेंगी?
पर कैसे छोड़ दे इन का दामन 
फखत इनसे ही तो हिम्मत बँधेगी । 

-एस.के.गुप्ता  (Self composed)
M-552

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