"कल, आज और कल"
वो हुए न हमारे
देते रहे हमें बस दिलासा
फिर छोड़ गए बीच मझधारे ।
कहते रहे यही राजन जी
थोड़ा तो धीरज तुम धरो जी
तन-मन से मैं अब लगा हूँ
पेंशन जल्द अपडेट होगी ।
हालांकि राह कुछ कठिन है
पर चिंता तुम न करो जी
मेरी कोशिश चल रही है
आशा है यह फलीभूत होगी ।
हम भी करते रहे उन पर भरोसा
तीन बरस में जो कुछ उन्होंने था परोसा
करते भी तो और हम क्या करते?
पर आज हमने खुद को जी भर के कोसा ।
ऐसा कभी सोचा न था कि राजन जी
किसी नेता की माँनिंद 'वायदे ही वायदे' करेंगे
यूं तो रघुराम जी को भुलाना है मुश्किल
किन्तु यादों में उनकी फूलों संग कांटे भी चुभेंगें ।
बेहतर तो यही होता यदि राजन जी
ये झूठे सपने न दिखाए होते अपनेपन के
न ही जगती कोई धूमिल-सी आशा
बिछुड़े हुए साथियों के परिजनों के मन में ।
सोचा था विदाई के अंतिम क्षणों में
अब तो वे सच, केवल सच ही कहेंगे
पर डाल दिया उस पर भी पर्दा
कहकर कि मंत्री जी से कल फिर मिलेंगे ।
कल भी यही सब हमने था देखा
आज फिर वही आपने कर दिखाया
पर 'या खुदा' हम तो अब भी वहीं खड़े हैं
वर्षों पहले जहां हमने खुद को था पाया ।
न जाने अब कल क्या होगा
क्या फिर से उम्मीदें जगेंगी?
पर कैसे छोड़ दे इन का दामन
फखत इनसे ही तो हिम्मत बँधेगी ।
-एस.के.गुप्ता (Self composed)
M-552
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